बम्बई की गलियों की किस्सा फ़रोशी
अमृतसर से शुरू हुई
लाहौर में खत्म न हो सकी,
कलम चलती रही
बेशरम हरामजादी,
शराब के दौर, चाय की चुस्कियां
सिग्रेट के कश,
कुछ आज भी
नाक़ाबिल ए बर्दाश्त हैं
इस आदमी के गश,
आवारागर्दी पसंद है इसे
सड़कछापों का नुमाइन्दा है,
बलवों की लाशों को इसने
कागज़ पे उठाया है ,
खाकिस्तरी आसमां इसका
अब ज़र्द हो गया है
कितने अफ़साने उगते होंगे
जहां मंटो गया है ...
- मायाराम
किस्सा फ़रोशी - कहानी बेचना
गश - घाव
बलवे - दंगे - फ़साद
खाकिस्तरी - मिटटी के रंग का
ज़र्द - पीला
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